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फलक,
रात,
तारे,
रौशनी,
चाँद,
और बारिस.
तुम कहती हो पागलपन है ,
मैं कहता हूँ दीवानापन .
एक स्पर्श ,
जो बारिस से नहला देती है ,
खवाहिश जो तारों की तरह मद्धिम है ,
और चाँद इतने करीब होकर भी दूर.
एक सिमटा हुआ फलक ,
जहां  आशा और निराशा मिलते हैं किसी बिंदु पर.
ये पागलपन नहीं है ,
ये एक नई दुनिया की खोज है -
यहाँ  जिंदगी एक नशा है.














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शब्द इरादों में बदल जाए तो अच्छा है तू मेरे ख्यालों से निकल जाए तो अच्छा है बेकार कोशिशें और एक ऊबा हुआ दिन  शाम तक इस घर से निकल जाए तो अच्छा है  तस्वीर ही काफी नहीं इंसान समझने के लिए  कहीं किसी मोड़ पे वो मिल जाए तो अच्छा है   गुमशुम सी है नदी चलो कुछ बात कर लेते हैं  कल का पता नहीं पर आज का दिन अच्छा है.

बारिश की रिंगटोन ....

आधी रात की  धीमी बारिश है.... हल्की ठण्ड है मैं अब भी जाग रहा हूँ .. एक खिलखिलाहट भरी आवाज़  मेरे कानों में गूँज रही है खिड़की से बाहर झांकता हूँ  एक पेड़ ठण्ड से कांप रहा है.. वो आवाज़ छनकर फिर मेरे कानो में गूँज रही है-- खिलखिलाहट भरी  नीद की ट्रेन आँखों के प्लेटफ़ॉर्म पे आ क्यूँ नहीं रही' ये हवायें खिडकियों पर इतना शोर क्यूँ मचा रही हैं  कमरे की बेतरतीब पड़ी हुई चीजों में - मेरे ख्वाब कहीं खो गए हैं. और ख्वाहिश facebook की फ्रेंडशिप लिस्ट की तरह ....... जिनसे चाहकर  भी chat नहीं हो  पाती . आँखे बंदकर लेटा हुआ हूँ फिर वही खिलखिलाहट भरी धुन मेरे कानो में गूँज रही है, अचानक मुझे  अपने  दोस्त की   चीख सुनाई देती है---- कम्बखत ! अपना फ़ोन क्यों नहीं उठाता .