Skip to main content

बारिश की रिंगटोन ....

आधी रात की  धीमी बारिश है....
हल्की ठण्ड है
मैं अब भी जाग रहा हूँ ..
एक खिलखिलाहट भरी आवाज़ 
मेरे कानों में गूँज रही है
खिड़की से बाहर झांकता हूँ 
एक पेड़ ठण्ड से कांप रहा है..
वो आवाज़ छनकर फिर मेरे कानो में गूँज रही है--
खिलखिलाहट भरी 
नीद की ट्रेन आँखों के प्लेटफ़ॉर्म पे आ क्यूँ नहीं रही'
ये हवायें खिडकियों पर इतना शोर क्यूँ मचा रही हैं 
कमरे की बेतरतीब पड़ी हुई चीजों में -
मेरे ख्वाब कहीं खो गए हैं.
और ख्वाहिश facebook की फ्रेंडशिप लिस्ट की तरह .......
जिनसे चाहकर  भी chat नहीं हो  पाती .
आँखे बंदकर लेटा हुआ हूँ
फिर वही खिलखिलाहट भरी धुन मेरे कानो में गूँज रही है,
अचानक मुझे  अपने  दोस्त की   चीख सुनाई देती है----
कम्बखत ! अपना फ़ोन क्यों नहीं उठाता .





Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

शब्द इरादों में बदल जाए तो अच्छा है तू मेरे ख्यालों से निकल जाए तो अच्छा है बेकार कोशिशें और एक ऊबा हुआ दिन  शाम तक इस घर से निकल जाए तो अच्छा है  तस्वीर ही काफी नहीं इंसान समझने के लिए  कहीं किसी मोड़ पे वो मिल जाए तो अच्छा है   गुमशुम सी है नदी चलो कुछ बात कर लेते हैं  कल का पता नहीं पर आज का दिन अच्छा है.

................

फलक, रात, तारे, रौशनी, चाँद, और बारिस. तुम कहती हो पागलपन है , मैं कहता हूँ दीवानापन . एक स्पर्श , जो बारिस से नहला देती है , खवाहिश जो तारों की तरह मद्धिम है , और चाँद इतने करीब होकर भी दूर. एक सिमटा हुआ फलक , जहां  आशा और निराशा मिलते हैं किसी बिंदु पर. ये पागलपन नहीं है , ये एक नई दुनिया की खोज है - यहाँ  जिंदगी एक नशा है.