आधी रात की धीमी बारिश है....
हल्की ठण्ड है
मैं अब भी जाग रहा हूँ ..
एक खिलखिलाहट भरी आवाज़
मेरे कानों में गूँज रही है
एक पेड़ ठण्ड से कांप रहा है..
वो आवाज़ छनकर फिर मेरे कानो में गूँज रही है--
खिलखिलाहट भरी
नीद की ट्रेन आँखों के प्लेटफ़ॉर्म पे आ क्यूँ नहीं रही'
ये हवायें खिडकियों पर इतना शोर क्यूँ मचा रही हैं
कमरे की बेतरतीब पड़ी हुई चीजों में -
मेरे ख्वाब कहीं खो गए हैं.
और ख्वाहिश facebook की फ्रेंडशिप लिस्ट की तरह .......
जिनसे चाहकर भी chat नहीं हो पाती .
आँखे बंदकर लेटा हुआ हूँ
फिर वही खिलखिलाहट भरी धुन मेरे कानो में गूँज रही है,
अचानक मुझे अपने दोस्त की चीख सुनाई देती है----
कम्बखत ! अपना फ़ोन क्यों नहीं उठाता .
nice piece of wrk
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