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उस दिन मुझे जाने क्या ऐसा हो गया था
काम से लौटकर बिस्तर पर गिर कर सो गया था
कोई आवाज़ दे मुझको पर दिखाई न दे
मैं अपने ही घर में जाने कहाँ खो गया था
वो कोई ख़्वाब था हकीकत मालूम नहीं मुझे
तूने गोद में रखकर सर मेरे होंठों को छुआ था
बड़ी देर तक आईने में देखा किया खुद को
पता नहीं वो मैं ही था या कोई और वहां था .

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शब्द इरादों में बदल जाए तो अच्छा है तू मेरे ख्यालों से निकल जाए तो अच्छा है बेकार कोशिशें और एक ऊबा हुआ दिन  शाम तक इस घर से निकल जाए तो अच्छा है  तस्वीर ही काफी नहीं इंसान समझने के लिए  कहीं किसी मोड़ पे वो मिल जाए तो अच्छा है   गुमशुम सी है नदी चलो कुछ बात कर लेते हैं  कल का पता नहीं पर आज का दिन अच्छा है.
ठंडी ठिठुरती रातों की दिल्ली  अच्छी है दिसम्बर के रातों की दिल्ली.  सभी को कहीं पे पहुँचने की जल्दी  बड़ी तेज रफ़्तार वाली है दिल्ली.  कहीं बेमतलब के झगड़ों में.. ............ सपनों से भरी हुई बसों में .............. ज़िन्दगी की ट्रेफिक में फँसी ............ कभी रेड तो कभी ग्रीन है दिल्ली . कभी सुबह की भूख ने दी शाम को दावत कहीं इजाबेला के थिरकते पैरों की शरारत कई उदास गलियों के खूबसूरत किस्सों में ग़ालिब के उलटे सीधे ख्यालों की दिल्ली .

सफ़र जारी है ..........

बहुत दुर तक अभी जाना है.... इरादों की सीढिया हैं , ख्वाहिसों से भरी है जेब कई खवाब हैं जिनके एड्रेस ढूढ़ने हैं . सुना है - एक खूबसूरत गाँव हैं ... जहाँ से मिलती हैं दिल की ट्रेने , किसी दिन बैठकर उसमे  सारी  दुनिया घूमूँगा . लेकिन उससे पहले - चढ़नी हैं  सीढिया यादों को तह करके रखना है आलमारी में लगाने   हैं ख्वाहिसों के पेड़ ढूढ़ने हैं कई  एड्रेस. तब तक लिए , सफ़र जारी है ..........