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Showing posts from March, 2013

एक दिन

एक दिन-  उदासियों में डूबे  हुए जब शाम की खिड़की खोली देखा संमुन्दर घर की दहलीज़ पर आ गया है चारों ओर फैली है रेत-नर्म और गीली बिल्कुल मेरे ख्यालों की तरह पांवों के निशान पीछे छोड़ते हुए मैं ढूँढ रहा हूँ किसी को , जिसे होना चाहिए था यही पर मेरे साथ लेकिन मुझे मिली-  छोटी-छोटी सीपियाँ एक टूटी हुई वायलिन बंद पड़ी हुई रेत घडी और एक सीलबंद लिफाफा न जाने कौन रख गया है , किसके लिए ,पता नहीं जब समुंदर ने सूरज को निगल लिया और रह गयी गीले शोरों की धुन रेत पर रेंगती उँगलियाँ थम सी गयी लहरों पर चलती हुई एक परी मेरे पास आई और बोली - "ये लिफाफा मेरे लिए हैं ". उसके हाथ बर्फ जैसे ठंडे थे चेहरा उजालों से भरा हुआ लिफाफा हाथ में लिए वो कुछ पल के लिए मुस्कुराई फिर लौट गयी उन्हीं लहरों के बीच मैंने रेत घडी उलट कर रख दी जोड़ लिया वायलिन के तारों को और छोटे-छोटे सीपियों से बोला - मुझे मालूम हैं ...मैं एक ख्वाब देख रहा हूँ .