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Showing posts from February, 2011

कुछ बेवज़ह

तेरे ख्वाबों से जिंदा है मेरी कहानियां अब तक , तुझे शब्दों में पिरोउं तो ऐसा लगता है  . खिड़की से झांकती एक शाम अधूरी , दरवाज़े पे खड़ा है कोई ऐसा लगता है. तेरे गाँव का रास्ता मुझे मालूम है फिर भी  तेरे घर तक नहीं पहुचुँगा ऐसा लगता है . मेरे ख्यालों के दीवारों पर जब धुप उतरती है , मैं लिखता हूँ कुछ बेवज़ह ऐसा लगता है.   
बारिश की बूंदे फूलों की खुश्बू इनसे भी महंगी तुम्हरी  हंसी है  नमी रेत की और समुन्दर की  लहरें  इनसे भी बढकर तुम्हरी ख़ुशी है  ढलता हुआ सूरज किरण चांदनी की  शायद तुम्हारे लिए ही बनी है  लिखने को करता है दिल तो बहुत कुछ  मगर मेरे पास शब्दों की कमी है...............