तेरे ख्वाबों से जिंदा है मेरी कहानियां अब तक , तुझे शब्दों में पिरोउं तो ऐसा लगता है . खिड़की से झांकती एक शाम अधूरी , दरवाज़े पे खड़ा है कोई ऐसा लगता है. तेरे गाँव का रास्ता मुझे मालूम है फिर भी तेरे घर तक नहीं पहुचुँगा ऐसा लगता है . मेरे ख्यालों के दीवारों पर जब धुप उतरती है , मैं लिखता हूँ कुछ बेवज़ह ऐसा लगता है.