फलक, रात, तारे, रौशनी, चाँद, और बारिस. तुम कहती हो पागलपन है , मैं कहता हूँ दीवानापन . एक स्पर्श , जो बारिस से नहला देती है , खवाहिश जो तारों की तरह मद्धिम है , और चाँद इतने करीब होकर भी दूर. एक सिमटा हुआ फलक , जहां आशा और निराशा मिलते हैं किसी बिंदु पर. ये पागलपन नहीं है , ये एक नई दुनिया की खोज है - यहाँ जिंदगी एक नशा है.