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Showing posts from September, 2010

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फलक, रात, तारे, रौशनी, चाँद, और बारिस. तुम कहती हो पागलपन है , मैं कहता हूँ दीवानापन . एक स्पर्श , जो बारिस से नहला देती है , खवाहिश जो तारों की तरह मद्धिम है , और चाँद इतने करीब होकर भी दूर. एक सिमटा हुआ फलक , जहां  आशा और निराशा मिलते हैं किसी बिंदु पर. ये पागलपन नहीं है , ये एक नई दुनिया की खोज है - यहाँ  जिंदगी एक नशा है.