किसी नदी के किनारे बारिश में उदास पुल के नीचे बैठकर कभी पढ़ी है कोई ज़िन्दगी की कविता .....…............................................ तेज बारिश की धुन शोर मचाती नदी जैसी ही होती है और ख्यालों को भीगने से बचा लेना जरूरी इसलिए तुम्हारे छाते का खो जाना कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। ....................................................... इससे पहले नशा उतर जाये बारिश खत्म हो और शहर चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाए मुझे अपनी ख्वाहिशों की नाव पर बैठकर कहीं और चले जाना चाहिए।