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किसी नदी के किनारे
बारिश में
उदास पुल के नीचे बैठकर
कभी पढ़ी है कोई ज़िन्दगी की कविता
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तेज बारिश की धुन
शोर मचाती नदी जैसी ही होती है
और ख्यालों को भीगने से बचा लेना जरूरी
इसलिए तुम्हारे छाते का खो जाना कोई इत्तेफ़ाक नहीं है।
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इससे पहले नशा उतर जाये
बारिश खत्म हो
और शहर चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाए
मुझे अपनी ख्वाहिशों की नाव पर बैठकर कहीं और चले जाना चाहिए।







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