डर के बीहड़ जंगलों में , रास्ते की खोज में तुम्हारे सपने , थककर समय की चट्टानों पे वैसे ही बैठ जाते हैं जैसे बहती हुई नदी को किसी ने अपने वश में कर लिया हो , जेबों में पड़ी अधूरी ख़्वाहिशें चिल्लरों की तरह शोर करती हैं और तुम्हे लगता है -------- फूलों पे मंडराते भौरों ने जरूर कोई नशा कर रखा है सुबह सुबह मरे हुए आदमी की तरह उठना और घड़ी की सुइयों से चिपक जाना.... टिक टिक टिक .............................. किसी को ढूंढना और खुद ही खो जाना एक दिन सब कुछ खत्म हो जाने के इंतज़ार में नदी के ऊपर खड़े उदास पुल बारिश की बाट जोहते किसान आसमानों में बिखरे रंग इश्क़ का द्वन्द और युद्ध का उन्मांद.