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Showing posts from December, 2016
ठंडी ठिठुरती रातों की दिल्ली  अच्छी है दिसम्बर के रातों की दिल्ली.  सभी को कहीं पे पहुँचने की जल्दी  बड़ी तेज रफ़्तार वाली है दिल्ली.  कहीं बेमतलब के झगड़ों में.. ............ सपनों से भरी हुई बसों में .............. ज़िन्दगी की ट्रेफिक में फँसी ............ कभी रेड तो कभी ग्रीन है दिल्ली . कभी सुबह की भूख ने दी शाम को दावत कहीं इजाबेला के थिरकते पैरों की शरारत कई उदास गलियों के खूबसूरत किस्सों में ग़ालिब के उलटे सीधे ख्यालों की दिल्ली .

वजूद

नशा है उतरने में वक़्त लगता है  टूटा हुआ दिल जुड़ने में वक़्त लगता है  क्यूँ चढ़ते हो इतनी ख्यालों की सीढ़ियां  जबकि तुमको ऊंचाइयों से डर लगता है  तिनाली पर खड़े उस पागल की तरह हो तुम  जिसकी बातों से शहर बेफिकर लगता है रात के कंधों पे चढ़ा हुआ ये चाँद क्यूँ वजूद से अपने बेख़बर लगता है. तिनाली( assamese) - तिराहा  
शोर   मचाती उन मशीनों को , कभी ज़रा गौर से सुनना ____ कहीं वो तुम पे हंस तो नहीं रही। ------------------------------------------- ख्यालों में पसरे सन्नाटे ,   और तुम्हारे रूम तक जाती   सीढियां दोनों ही आलसी हैं। ------------------------------------------ न्यूटन के सिर   पे सेब का गिरना और मेरा तुमसे मिलना एक   जैसी ही घटना  थी  ।