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किसी नदी के किनारे बारिश में उदास पुल के नीचे बैठकर कभी पढ़ी है कोई ज़िन्दगी की कविता .....…............................................ तेज बारिश की धुन शोर मचाती नदी जैसी ही होती है और ख्यालों को भीगने से बचा लेना जरूरी इसलिए तुम्हारे छाते का खो जाना कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। ....................................................... इससे पहले नशा उतर जाये बारिश खत्म हो और शहर चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाए मुझे अपनी ख्वाहिशों की नाव पर बैठकर कहीं और चले जाना चाहिए।
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छाता

एक दिन तुमने मुझे अपना छाता दिया था मैं तुम्हारे घर के दरवाजे पे खड़ा था और बाहर बारिश हो रही थी बहुत कुछ कहना चाहता था तुमसे पर तुम्हारा घर इतना बड़ा है कि - मेरे अल्फ़ाज़ तुम्हारे कानों तक पहुँचने से पहले ही कहीं खो गये ज़रा देख लेना कहीं कोई थककर तुम्हारे तकिये के पास पड़ा सुस्ता न रहा हो या तुम्हारे बालों में आके उलझ गया हो जैसे मैं उलझ जाता हूँ  मैं जब भी मिलता हूँ तुमसे ये घड़ी के कांटे मुझे काँटों की तरह चुभते हैं साले आराम से चलने बजाय दौड़ने लगते हैं तुम्हारा छाता अभी भी मेरे पास है जब भी लौटाने की सोचता हूँ ... बारिश आ जाती है।
डर के बीहड़ जंगलों में , रास्ते की खोज में तुम्हारे सपने , थककर समय की चट्टानों पे वैसे ही बैठ जाते हैं जैसे बहती हुई नदी को किसी ने अपने वश में कर लिया हो , जेबों में पड़ी अधूरी ख़्वाहिशें चिल्लरों की तरह शोर करती हैं और तुम्हे लगता है -------- फूलों पे मंडराते भौरों ने जरूर कोई नशा कर रखा है सुबह सुबह मरे हुए आदमी की तरह उठना और घड़ी की सुइयों से चिपक जाना.... टिक टिक टिक .............................. किसी को ढूंढना और खुद ही खो जाना एक दिन सब कुछ खत्म हो जाने के इंतज़ार में नदी के ऊपर खड़े उदास पुल बारिश की बाट जोहते किसान आसमानों में बिखरे रंग इश्क़ का द्वन्द और युद्ध का उन्मांद.
उस दिन मुझे जाने क्या ऐसा हो गया था काम से लौटकर बिस्तर पर गिर कर सो गया था कोई आवाज़ दे मुझको पर दिखाई न दे मैं अपने ही घर में जाने कहाँ खो गया था वो कोई ख़्वाब था हकीकत मालूम नहीं मुझे तूने गोद में रखकर सर मेरे होंठों को छुआ था बड़ी देर तक आईने में देखा किया खुद को पता नहीं वो मैं ही था या कोई और वहां था .
शब्दों की हेरा फेरी अजीब होती है  टुकड़ा टुकड़ा जोड़ो और कुछ गढ़ लो  बेमतलब सा आत्मसंतुष्टी के लिए  और जब आस पास सब बदल रहा हो  जरूरी होता है आपने आपको बचा लेना  उन चीज़ों से जो तुम्हे अंदर से खा जाना चाहते हैं चाँद में चरखा कातती बुढ़िया को देखना पानी में पत्थर फेंकते उसकी छलांग तय करना किसी लड़की का लड़के को बाहों में भर लेना वेश्यालयों में लगी घंटी से अजान का निकलना रास्ता काटती बिल्ली का तुम्हे घूरना बचकाना सा लगता है ..... पर -- बेहतर होता है किसी से नफरत करने से ।
ठंडी ठिठुरती रातों की दिल्ली  अच्छी है दिसम्बर के रातों की दिल्ली.  सभी को कहीं पे पहुँचने की जल्दी  बड़ी तेज रफ़्तार वाली है दिल्ली.  कहीं बेमतलब के झगड़ों में.. ............ सपनों से भरी हुई बसों में .............. ज़िन्दगी की ट्रेफिक में फँसी ............ कभी रेड तो कभी ग्रीन है दिल्ली . कभी सुबह की भूख ने दी शाम को दावत कहीं इजाबेला के थिरकते पैरों की शरारत कई उदास गलियों के खूबसूरत किस्सों में ग़ालिब के उलटे सीधे ख्यालों की दिल्ली .

वजूद

नशा है उतरने में वक़्त लगता है  टूटा हुआ दिल जुड़ने में वक़्त लगता है  क्यूँ चढ़ते हो इतनी ख्यालों की सीढ़ियां  जबकि तुमको ऊंचाइयों से डर लगता है  तिनाली पर खड़े उस पागल की तरह हो तुम  जिसकी बातों से शहर बेफिकर लगता है रात के कंधों पे चढ़ा हुआ ये चाँद क्यूँ वजूद से अपने बेख़बर लगता है. तिनाली( assamese) - तिराहा