किसी नदी के किनारे बारिश में उदास पुल के नीचे बैठकर कभी पढ़ी है कोई ज़िन्दगी की कविता .....…............................................ तेज बारिश की धुन शोर मचाती नदी जैसी ही होती है और ख्यालों को भीगने से बचा लेना जरूरी इसलिए तुम्हारे छाते का खो जाना कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। ....................................................... इससे पहले नशा उतर जाये बारिश खत्म हो और शहर चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाए मुझे अपनी ख्वाहिशों की नाव पर बैठकर कहीं और चले जाना चाहिए।
एक दिन तुमने मुझे अपना छाता दिया था मैं तुम्हारे घर के दरवाजे पे खड़ा था और बाहर बारिश हो रही थी बहुत कुछ कहना चाहता था तुमसे पर तुम्हारा घर इतना बड़ा है कि - मेरे अल्फ़ाज़ तुम्हारे कानों तक पहुँचने से पहले ही कहीं खो गये ज़रा देख लेना कहीं कोई थककर तुम्हारे तकिये के पास पड़ा सुस्ता न रहा हो या तुम्हारे बालों में आके उलझ गया हो जैसे मैं उलझ जाता हूँ मैं जब भी मिलता हूँ तुमसे ये घड़ी के कांटे मुझे काँटों की तरह चुभते हैं साले आराम से चलने बजाय दौड़ने लगते हैं तुम्हारा छाता अभी भी मेरे पास है जब भी लौटाने की सोचता हूँ ... बारिश आ जाती है।